महागठबंधन मे सिर्फ नीतीश की चलती -काँग्रेस ,राजद सिर्फ मुख्य दर्शक---बीजेपी .. क्या है रणनीति ?

महागठबंधन मे सिर्फ नीतीश की चलती -काँग्रेस ,राजद सिर्फ मुख्य दर्शक---बीजेपी  .. क्या है रणनीति ?
महागठबंधन मे सिर्फ नीतीश की चलती -काँग्रेस ,राजद सिर्फ मुख्य दर्शक---बीजेपी  .. क्या है रणनीति ?

 NBL PATNA :  बिहार में सिर्फ एक विधायक को नीतीश कुमार ने अपने कैबिनेट में मौका दिया। जबकि उम्मीद की जा रही थी, महागठबंधन में शामिल बाकि घटक दलों के विधायक को भी मौका मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसके बाद अब दबी जुबान में महागठबंधन में शामिल बाकि पार्टियों ने अपनी नाराजगी भी जाहिर करनी शुरू कर दी है।

आरोप ये लगाया जा रहा है कि नीतीश कुमार के कोटे एक मंत्री संतोष सुमन ने इस्तीफा क्या दिया, उन्होंने तत्काल रत्नेश सदा को मंत्री पद की शपथ दिला दी। जबकि महागठबंधन में शामिल सबसे बड़े दल राजद के दो मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है, मगर उस पद पर भरपाई किसी अन्य नेता को मंत्री पद देकर नहीं की गई। यहां तक कि कांग्रेस मंत्रिपरिषद विस्तार की राह ही देखती रह गई।राजनीतिक गलियारों की बात करें तो नीतीश कुमार से न तो राजद के रणनीतिकार खुश हैं और न ही कांग्रेस के वरीय नेता।

संतोष मांझी के जाने के बाद नीतीश कुमार ने दलित विरोध को ध्यान में रखते डैमेज कंट्रोल करने के लिए तीन बार से लगातार विधायक रहे रत्नेश सदा को मंत्री पद का तोहफा दे डाला।  जबकि अंदरखाने की मानें तो राजद के तरफ से भी प्रस्ताव था कि कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह और कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के इस्तीफे के बाद दो मंत्री पद पर शपथ दिलाना बनता है। एक तो ऐसे भी राजद पर सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगता रहा है। संयोग से कार्तिकेय सिंह और सुधाकर सिंह दोनों ही सवर्ण कोटा से आते हैं। मगर ये नहीं हो सका। अब 23 जून 2023 को होनेवाली विपक्षी एकता मुहिम का ख्याल कर चुप रहना ही बेहतर समझा गया।

रत्नेश सदा को मंत्रिपरिषद में लाने को कांग्रेस राजनीतिक चाल मान रही है। कहा जा रहा है कि हाल में ही नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को जब कांग्रेस नेता अजीत शर्मा से छीना गया, तब शकील अहमद को नेता प्रतिपक्ष बनाते हुए ये कहा गया था कि मंत्रिपरिषद विस्तार में मौका दिया जाएगा। मगर ये नहीं हुआ। इससे कांग्रेस के भीतर भी नाराजगी के स्वर हैं।

 जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार ने ये मान लिया है कि अगड़ों का वोट महागठबंधन को मिलने वाला नहीं है। इसलिए राजद के दो मंत्री सुधाकर सिंह और कार्तिकेय सिंह चुकी सवर्ण हैं, इसलिए उन पदों को भरने के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन जब मंत्री संतोष सुमन ने इस्तीफा दिया और जीतन राम मांझी हरकत में आ गए।  यहां तक कि माउंटेनमैन दशरथ मांझी के बेटे और दामाद को जदयू की सदस्यता दिलाई।

जहां तक उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का सवाल है तो, वो भी समझते हैं कि सवर्ण मत भाजपा को ही जाएगा या फिर उनकी बात नहीं मानी जा रही होगी। तेजस्वी यादव शायद इस स्थिति में नहीं होंगे कि वो नीतीश कुमार पर दबाव बनाकर या अल्टीमेटम देकर अपने कोटे के खाली दो मंत्री पद को भर सकें। लेकिन नीतीश कुमार के इस फैसले से एक संदेश तो ये निकला कि महागठबंधन में नीतीश कुमार जो चाहे कर सकते हैं।

बिहार बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि महागठबंधन में किसी की नहीं चलती। नीतीश कुमार जो चाहते हैं, वो करते हैं। मंत्रिपरिषद विस्तार की मांग बहुप्रतीक्षित थी। बावजूद उन्होंने केवल अपनी पार्टी के मंत्री पद को भरा। राजद हो या कांग्रेस, चल रहा है तो सिर्फ नीतीश कुमार की।